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दक्षिणमुखी भूखण्ड भी शुभ हो सकते हैं

Posted by khaskhabar.com
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यह आम धारणा है कि दक्षिणमुखी भूखंड अच्छे नहीं होते एवं आम जनता इससे कतराती है। वास्तु नियमों के प्रकाश में इस तथ्य को समझने का प्रयास करते हैं। वास्तु नियमों के अनुसार उत्तर दिशा हल्की होनी चाहिए एवं दक्षिण भारी। भूखंड निर्माण करने पर सामान्यत: आगे सेट बैक अधिक छो़डा जाता है। दक्षिण के हल्के रहने से गृहस्वामी के व्यक्तित्व में तेज नहीं रहता। यह दोष गंभीर बीमारियों, झग़डों, कोर्ट कचहरी को भी जन्म देता है। भूमिगत जल टैंक अथवा बोरिंग का निर्माण सामान्यत: आगे ही कराया जाता है। दक्षिणमुखी भूखंड में इस निर्माण से जल दक्षिण, दक्षिण पश्चिम आदि दिशाओं में प़डता है। दक्षिण में जल गृह स्वामिनी के स्वास्थ्य के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
दक्षिण के द्वारों के देवताओं एवं प्रकृति के अनुरूप प्राप्त फलों का विश्लेषण निम्न है :-
पितृ : दक्षिण-पश्चिम में स्थित इस द्वार को पितृगण भी कहते हैं। वास्तु ग्रंथों के अनुसार इस दिशा में सुई की नोक के बराबर भी छेद नहीं होना चाहिए। यहां किया गया द्वार पुत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
मृग : दक्षिण-पश्चिम से दक्षिण की ओर चलने पर यह दूसरा द्वार है। यहां यदि द्वार हो तो पुत्र की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। संपूर्ण श्रम के पश्चात भी कार्य नहीं सधते एवं घोर मानसिक द्वेष रहता है
भृंगराज : यह द्वार धीरे-धीरे धनहीनता की ओर ले जाता है। व्यक्ति व्यवसाय आदि प्रारंभ कर देता है परंतु संसाधन की कमी से जूझना प़डता है। उसे अपने निकटतम व्यक्ति से भी मदद नहीं मिल पाती। अंतत: स्थितियां भयावह हो जाती हैं।
गंधर्व : वास्तु ग्रंथों में इस द्वार का परिणाम कृतघAता बताया गया है। इस द्वार के गृहस्वामी को कृतघता का शिकार होना प़डता है। सबके लिए अपना सर्वस्व लुटाकर भी ठगा जाता है।
यम : यम पर आधिपत्य प्रेताधिप का है। जिस घर में यह द्वार होता है वहां सदस्यों के स्वभाव में गुस्सा एवं जिद होता हैं। वे दुस्साहसी हो जाते हैं तथा सीमाओं का उल्लंघन कर अंतत: पतन को प्राप्त होते हैं।
गृहत्क्षत : दक्षिण के आठ द्वारों में से यही एकमात्र द्वार है जिससे शुभ का संकेत है। यह द्वार भोजन, पान एवं पुत्र की वृद्धि करता है। इस द्वार के होने से वंशानुगत व्यवसाय पनपते हैं। पिता को पुत्र की योग्यताओं पर भरोसा होता है एवं पुत्र पिता की अपेक्षाओं पर खरा उतरता है।
वितथ : वितथ के पर्यायवाची के रूप में ग्रंथों में अधर्म, अप्रिय आदि शब्द मिलते हैं। यहां द्वार धोखा, फरेब की प्रवृत्ति देता है। षड्यंत्रों का ताना-बाना रचवाता है। आपराधिक तЮव की वृद्धि अंतत: सर्वनाश का कारण बनती है। पूषा : यह द्वार दासत्व देता है। कुछ ब़डे घरानों के पतन में यह द्वार पाया गया है कुछ गलत निर्णय आत्मघाती सिद्ध होते हैं और धनधान्य से परिपूर्ण परिवार अचानक दरिद्रता के अंधकार में घिर जाते हैं। इस द्वार के प्रकोप से मालिकों को साधारण नौकरी करते हुए देखा गया है।
अनल : दक्षिण पूर्व के इस द्वार का परिणाम अल्प पुत्रता है। यह परिणाम पुत्र के घर छो़डने, पारिवारिक विभाजन अथवा पुत्र की मृत्यु के रूप में भी आ सकता है। दक्षिण के नौ द्वारों में से सिर्फ एक (गृहाक्षत) शुभ है। । यदि हम इन तथ्यों को ध्यान में रखकर निर्माण कराएं एवं उचित द्वार बनाएं तो दक्षिणमुखी भूखंड भी अच्छे परिणाम देगा।