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लर्निग डिसएबिलिटी

Posted by khaskhabar.com
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क्या है लर्निग डिसएबिलिटी : लर्निग डिसएबिलिटी एक जेनेटिक प्रोब्लम है। लगभग 30 फीसदी बच्चे इस समस्या से पीडित होते हैं। इसके बावजूद ज्यादातर माता-पिता इसके बारे में जागरूक नहीं हैं। बच्चे द्वारा बार-बार गलतियां दोहराए जाने पर वे उसे बच्चे की लापरवाही समझ लेतें हैं और उसे बेवजह मारना-पीटना और डांटना शुरू कर देते हैं। वे ये नहीं समझ पाते कि उनका बच्चा लर्निग डिसएबिलिटी से ग्रस्त है हो सकता है। चिकित्सकों के मुताबिक लर्निग डिसएबिलिटी से ग्रस्त बच्चा आम बच्चों की तुलना में कुछ अलग होता है। ऎसे बच्चो अवसर मिलने के बावजूद भी अपनी क्षमता का बेहतरीन प्रदर्शन नहीं कर पाता।
कैसे पहचाने लर्निग डिसएबिलिटी को: लर्निग डिसएबिलिटी जन्मजात समस्या है। जब तक बच्चों का सामना रीडिंग-राइटिंग से नहीं होता, तब तक यह समस्या न तो पैरेंट्स के सामने आती है और न ही बच्चों के। अमूमन दूसरी या तीसरी कक्षा में जाने पर यह समस्या आरंभ होती है। जब उन्हें अक्षर बोलने, लिखने और पहचानने के लिए कहा जाता है। किन्तु लर्निग डिसएबिलिटी से ग्रस्त होने के कारण वह बोलने, लिखने और पहचानने मे अक्षम होते हैं। हालांकि उनका आई क्यू लेवल सामान्य होता है। मगर पूछे गए प्रश्नों का जवाब देने में ये बच्चो असक्षम होते हैं।
1. अगर बच्चा देर से बोलना शुरू करे।
2. साइड, शेप व कलर को पहचानने में गलती करे।
3. उच्चारण मे गलती करे।
4. लिखने में गलती करे।
5. आपके द्वारा बताए हुए निर्देशों को याद रखने में उसे कठिनाई महसूस हो।
6. अर्थमेटिक के नंबरो को पहचानने में गलती करे।
7. बटन लगाने या शू के लेस बांधने में दिक्कत हो।
कारण :1. लर्निग डिसएबिलिटी एक जेनेटिक प्रॉब्लम है। अगर माता-पिता में से किसी एक को यह समस्या है तो बच्चों में भी इसके होने की संभावना अधिक होती है।
2. बच्चे के जन्म के समय सिर पर चोट लगने या घाव होने के कारण भी लर्निग डिसएबिलिटी हो सकती है।
3. मस्तिष्क या तंत्रिका तंत्र की संरचना में ग़डब़ड होने पर भी बच्चों में यह प्रोब्लम हो सकती है।
4.जो बच्चे प्री-मैच्योर होते हैं या जन्म के बाद जिनमें कुछ मेडिकल प्रॉब्लम होती है।
लर्निग डिसएबिलिटी से अनजान पैरेंट्स: अधिकतर माता-पिता अपने बच्चों के लर्निग डिसएबिलिटी से पीडित होने की बात समझ ही नहीं पाते। मॉडर्न सोसायटी और काम की व्यस्तता के चलते आजकल माता-पिता के पास बच्चों के लिए समय ही नहीं है। जबकि लर्निग डिसएबिलिटी के शिकार बच्चों को जरूरत होती है तो केवल पैरेंट्स और उनके प्यार की। यदि माता-पिता धैर्य और समझदारी से काम ले तो काफी हद तक ऎसे बच्चों की समस्या को कंट्रोल किया जा सकता है।
उपाय: 1. इस बिमारी से पिडित बच्चों की परवरिश के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। माता-पिता को समझना चाहिए कि ऎसे बच्चों को सीखने में समय लगता है। इसलिए ऎसे बच्चों के साथ स्नेह भरा व्यवहार करें।
2. अपने बच्चों की तुलना दूसरों बच्चों के साथ न करें। पैरेंट्स का तुलनात्मक व्यवहार उनमें हीनभावना पैदा कर सकता है।
3. माता-पिता को चाहिए कि वे भी हालात को स्विकार करें। बार-बार डांटने से बच्चा अपना आत्मविश्वास खो देता है और निराश हो जाता है। इसलिए उन्हें डांटने के बजाय प्यार-मनुहार से पेश आएं। उन्हें महसूस न होने दे कि वे किसी बिमारी के शिकार हैं।
4. ऎसे बच्चों के इलाज के लिए पेडियाट्रिशियन, सायकियाट्रिस्ट, रेमिडियल एज्युकेटर, आकुपेशनल थेरेपिस्ट के विचार जानने जरूरी है। केवल एक व्यक्ति की राय लेकर उपचार शुरू न करें। उपरोक्त सभी लोगों के विचार जानना भी जरूरी है।
5. उपचार के दौरान स्पेशल एज्युकेटर से थेरेपी सीखें और फिर बच्चों के साथ वक्त बिताएं। उनकी मेहनत और आपकी मदद से इनमें सुधार अवश्य होगा।
ऎसे बच्चों को सरकार की तरफ से परीक्षाओं में विशेष छूट दी जाती है, जैसे- परीक्षा में एक्स्ट्रा टाइम मिलना, एक्स्ट्रा राइटर मिलना, केलकुलेटर का इस्तेमाल, मौखिक परीक्षा देना आदि। इस छूट को पाने के लिए सरकारी अस्पताल का प्रमाण-पत्र होना आवश्यक है। इस छूट को पाना ऎसे बच्चों का कानूनी अधिकार है। अत: पैरेंट्स को चाहिए कि वे अपने बच्चों को यह अधिकार जरूर दिलवाएं।