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अंक और स्वास्थ्य

Posted by khaskhabar.com
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अंक ज्ञान से हर तरह के मामले की भविष्वाणी की जा सकती है, लेकिन इसका गहरा संबंध स्वास्थ्य से भी है। शरीर के विभिन्न महत्वपूर्ण हिस्सों के सही माप के साथ-साथ उन अंकों की जानकारी होना भी जरूरी है,जो स्वस्थ रहने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। इस अंक को उसके उसी स्तर तक बनाए रखना क्यों जरूरी है।
कोलेस्ट्रॉल नंबर 5: देखा जाए,तो शरीर में कुल कोलेस्ट्रॉल का स्तर 5 एमएमआंएल/एल से अधिक नहीं होना चाहिए। एमएमओएल/एल स्वास्थ्य को मापने की इकाई है। यदि किसी को दिल की बीमारियां होने का खतरा अधिक है,तो ज्यादा से ज्यादा 5 नंबर सुरक्षित माना जाता है। भारतीयों में यह स्तर औसतन 5.7 से 6.0 होता है,जो कि अधिक माना जाता है। जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल बहुत अधिक बढ जाता है। तो यह धमकियों की दीवारों में जमा हो जाता है। इससे दिल का दौरा बढने का खतरा बढ जाता है।
क्या करें: सेचुरेटेड वसा कम से कम खांए। यह डेयरी प्रोडक्ट,बिस्कुट और केक में मिलता है। मोनोसनुरेटेड वसा (ऑलिव ऑइल) और ओमेगा-3 (मछली) को भोजन में शामिल करें। जौ और दालों (मसर,मटर,बींस) में कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक फाइबर होत हैं। नियमित रूप से व्यायाम करने से सुरक्षा प्रदान करनेवाले अच्छे कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ सकता है।
कमर 32: यदि कमर का साइज 32 इंच से अधिक होगा। ऎसा समझा जाता है कि कमर पर चरबी का चढा होना उस हिस्से के अंगों जैसे लिवर के लिए अच्छा नहीं समझा जाता। इस तरह के अंगों पर चरबी चढने से उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है और इनमें से ऎसे रसायन निकलते हैं, जो शरीर के इंसुलिन सिस्टम को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे टाइप 2 डाइबिटीज होने को खतरा बढ सकता है।
क्या करें: स्वास्थ्यपूर्वक डाइट लें। सप्ताह में 5 दिन नियमित रूप से 30 मिनट के लिए व्यायाम करें। मेनोपॉज के बाद कमरवाले हिस्से पर खासतौर से ध्यान दें। हारमोन्स में बदलाव आने का मतलब है कि चरबी हिप्स और जांघों पर चढने की बजाय कमर को अपना निशाना बनाएगी। हमेशा अपनी कमर का माप खडे हो करर लें। माप लेते समय शांत रहें और ध्यान रहे इस हिस्से पर कपडे ना हों,तो बेहतर है। टेप को अपने पेट के सबसे चौडे हिस्से पर रख कर माप लें।
हडि्डियों का घनत्व -1.5: यदि हड्डियों का घनत्व 0से-1.5 के बीच है,तो यह सामान्य है। अगर यह-1.5 से -2.1 के बीच है,तो इसका अर्थ है कि ऑस्टियोपीनिया है। यदि हड्डियों का घनत्व औसत से कम होने पर जीवनशैली में सुधार लाने की जरूरत होती है। ऑस्टियोपोरोसिस के शिकार होती है। ऑस्टियोपोरिसिस से फै्रक्चर होने की जरूरत होती हैं।
क्या करें: सैर,डांस या एरोबिक्स जैसे व्यायाम करें।इनसे वजन कम होता है,हड्डियों मजबूत और स्वस्थ होती हैं। हड्डियों को मजबूत बनाने में मददगार कैल्शियम से भरपूर चीजें जैसे प्रोडक्ट और हरी पतेदार सब्जियां भरपूर मात्रा में खाएं। नियमित रूप से सूर्य की रोशनी का सेवन करें। इसमें मिलनेवाला विटामिन डी कैल्शियम को सोखने में मदद करता है रोज 5 मिनट के लिए सूर्य की रोशनी लेना पर्याप्त हैं। ऎसे में बाजू और चेहरा आदि ढके हुए नहीं होने चाहिए।
दिल की धडकन 74 (62-85) होना: दिल की धडकन भी आपके स्वास्थ्य का हाल बताती है। हाल ही में की गयी रिसर्च से पता चलता है कि आराम करते समय दिल की धडकन के 90 बीपीएम (बीट्स पर मिनट)से अधिक होने से हार्ट अटैक का खतरा बढ सकता है। लेकिन 62से 85 के बीच के अंक को सामान्य समझा जाता है। ब्लड पे्रशर,कोलेस्ट्रॉल का स्तर, वजन और फिटनेस आदि सभी इसके महत्वपूर्ण कारण माने जाते हैं।
क्या करें:अधिक व्यायाम करें। दिल भी मांसपेशियों की तरह है,जिसे व्यायाम की आवश्यकता होती है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि वह शरीर में प्रभावी ढंग से खून पंप कर सकता है। राजमर्रा के कामों जैसे सैर,बागवानी करने आदि हर उस काम का अपना महत्व है, जिसे करने के बाद सांसे नियंत्रण से थोडा बाहर हो जाती हैं। जिस समय आप आराम कर रहे होते हैं,उस समय अपनी नाडी की गति जांचें। इसका पता लगाने के लिए अपने सीधे हाथ की पहली और दूसरी उंगली के आगे के हिस्से को बाएं हाथ के थोडा नीचे रखें। अब एक मिनट के अंदर नाडी के स्पंदन की दर का पता लगाएं। यह स्पंदन मजबूत और नियमित होना चाहिए। अगर यह अनियमित से नीचे या लगातार 60 बीपीएम से नीचे या 90 से अधिक है,तो तुरंत डॉक्टर से मिलें।
ब्लड शुगर का अंक-6.1: यदि फॉस्टिंग में ब्लड-ग्लूकोज (शुगर) का स्तर 109 एमजी यानी 6.1 एमएमओएल/एल से अधिक चला जाता है,तो यह इस बात का संकेत है कि आपका शरीर ग्लूकोज को ऊर्जा में परिवर्तित नहीं कर रहा है,जैसा कि इसे करना चाहिए। फॉस्टिंग में ब्लड टेस्ट कराने का मतलब है कि कम से कम 8 घंटे के लिए कुछ खाया ना हो। यह इस बात का सूचक है कि डाइबिटीज होने का खतरा बढ गया है,जो कि 125 एमजी यानी 7 एमएमओएल/एल के बीच है,तो इसे आईजीटी या इंपेयर्ड ग्लूकोज टोलरेंस कहते हैं, जिसका अर्थ है कि दिल की बीमारी और स्ट्रोक का खतरा थोडा ज्यादा बढ गया है।
क्या करें: स्वास्थ्यकारी चीजें खाएं। व्यायाम अधिक करें। यदि वजन अधिक है,तो अपना वजन कम करें। डाइबीटीज के लक्षणों का खास यूरिन आना, बेवजह वजन का घटना या बढना,ठीक से दिखाई ना देना आदि।यदि इसमें से कोई भी लक्षण नजर आए,तो नुरंत अपने डॉक्टर से मिलें। ब्लड शुगर का स्तर अचानक बहुत अधिक या कम ना हो जाए, इस स्थिति से बचने के लिए बेहतर यही है कि ऎसी चीजे खाएं, जिनका ग्लाइसीमिक इंडेक्स कम या मध्यम हो। इस तरह की चीजों में सेब,अंगूर,सूखी खुबानी,आलूबुखरा और दही आदि शामिल हैं।
ब्लड पे्रशर का अंक 140/85: ब्लड पे्रशर 140/85 से अधिक नहीं होना चाहिए। अगर ब्लड पे्रशर की रीडिंग इससे कम आए,तो दिल की बीमारियां व स्ट्रोक होने का खतरा कम होता है। यदि किसी को हार्ट अटैक,स्ट्रोक या दिल की बीमारी या डाइबिटीज है,तो इससे गुरदे की बीमारी,डिमेंशियां और आंखों की समस्याएं हो सकती हैं।
क्या करें: रोज ज्यादा से ज्यादा फल और सब्जियां खाएं। लेकिन नमक ज्यादा मात्रा में ना खाएं। सप्ताह में 5 बार 30 मिनट के लिए व्यायाम करें। यदि ब्लड पे्रशर अधिक है, तो डॉक्टर की सलाह से दवा लें।
टेस्ट क्या हों
यदि 45 वर्ष से अधिक आयु के हैं, तो डॉक्टर कार्डियोवेस्कुलर टेस्ट की जांच के लिए कह सकते हैं। इसमें सामान्य रूप से स्वास्थ्य की जांच के साथ-साथ ब्लड पें्रार और कोलस्ट्रॉल के स्तर की जांच की जाती है। उम्र के इस दौर में ब्लड पे्रशर की जांच नियमित रूप से कराना जरूरी है,क्योंकि इसका कोई खास लक्षण होता है। चाहें,तो घर पर ब्लड पे्रशर को मापनेवाला यंत्र रख सकते हैं और इससे समय-समय पर इसकी जांच कर सकते हैं। यदि टाइप 2 डाइबिटीज होने का खतरा है,तो डॉक्टर फॉास्टिंग में प्लाज्मा ग्लूकोज टेस्ट कराने की सलाह देते हैं। ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा होने पर डेक्सा (डीईएक्सए यानी डुअल एनर्जी एक्स-रे अब्सोरपटिओमेट्री) स्कै न कराने के लिए कहते हैं। इससे हिप्स और रीढ की हडि्डयों के घनत्व के बारे में पता चलता है। स्कै न तो फायदेमंद होता ही है, लेकिन उसके साथ ही अन्य कारण जैसे फैमिली हिस्ट्री और पहले कभी हुए फै्रक्चर भी ओस्टियोपोरासिस/फै्रक्चर भी ओस्टियोपोरोसिस रिस्क का पता लगाने में मददगार होते हैं। हडि्डयों का घनत्व औसत से कम होने पर लाइफ स्टाइल में सुधार लाने की जरूरत होती है। ऑस्टियोपोरासिस से फै्रक्चर होने का खतरा बढ जाता है और तब उसका इलाज कराना पडता है।