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संवादहीनता:विघटित होते परिवार

Posted by khaskhabar.com
disputes among family

पिछले कुछ वर्षो में संयुक्त परिवार का प्रचलन घटता जा रहा है। इसका एक ब़डा कारण है संवादहीनता। पहले एक ही छत के नीचे एक ही परिवार की चार-चार पीढि़यां एक साथ खुशी से रहते थीं।लेकिन आजकल सवांदहीनता के कारण संयुक्त परिवार का प्रचलन लगभग खत्म सा हो गया है। कल्पना कीजिए कि पहले संयुक्त परिवार में चाय भी बनती तो बीस कप एक साथ, बीस व्यक्तियों का खाना एक साथ। दोनों समय जब खाना बनता तो लगता जैसे किसी छोटे-मोटे समारोह की तैयारियां हो रही हैं। जिस बहू के हाथ जो काम लगा निपटा दिया। किसी को किसी से कोई शिकवा नहीं। पूरे परिवार में आपसी समन्वय और त्याग की भावना होती थी। लेकिन संवादहीनता के चलते इन दिनों परिवार तीन-तेरह होते जा रहे हैं।
पहले पडौस में किसी ल़डकी की शादी होती थी तो पूरे मोहल्ले में जश्न का सा माहोल बन जाता था। पूरा मोहल्ला शादी की तैयारियों में जुट जाता था,जैसे उनकी स्वयं कि ल़डकी की शादी हो रही है। मोहल्ले के सभी व्यक्ति यथाशक्ति सहयोग करते थें। लेकिन अब कब बारात आती है,और कब ल़डकी विदा हो जाती है,प़डौसियों को पता तक नहीं चलता। आज प़डौस में कौन रह रहा है, यही पता नहीं, उसके सुख-दुख में भागीदार बनना तो बहुत ब़डी बात है।
रामेश्वर दो बरस पहले राज्य सेवा से निवृत हुए। उनका पुत्र रमेश भी उसी कार्यालय में काम करता है, किंतु वह अपने व्यवहार से प्रतिपल यह जताता रहता है जैसे पिता ने तो कभी नौकरी की ही नहीं। रामेश्वर पैंसठ बरस की उम्र में भी घर से बाहर निकलता है तो कहकर जाता है कि वह कहां जा रहा है और कब तक लौट आएगा, किंतु रमेश कभी भी रामेश्वर को यह कहकर नहीं जाता कि वह कहां जा रहा है और कब तक लौट आएगा। चिंताग्रस्त पिता देर रात तक उसकी प्रतिक्षा करता रहता है और पूछने पर पुत्र झल्ला प़डता है कि वह कोई बच्चा थो़डे ही है जो खो जाएगा। कम्प्यूटर पर काम करते समय एक दिन पिता कहीं अटक गया और उसने रमेश से पूछ लिया तो उसे यह सुनने को मिला कि रहने दो, यह आपकी समझ में नहीं आएगा। यह व्यथा अकेले रामेश्वर की ही नहीं है,लगभग हर पिता की आज यही स्थिति है। धर्मशाला में रह रहे दो अपरिचित भी मिलने पर एक-दूसरे से बातचीत करते हैं, किंतु घर में पिता-पुत्र के बीच कोई संवाद नहीं होता।
हमें इस तरह के अनेक उदाहरण अपने आस-पास देखने को मिल जाएगें जिनमें संवादहीनता एंव संवेदनहीनता के अलग-अलग प्रकार दिखाई देते हैं। आखिर ऎसी कौनसी परिस्थितियां उत्पन्न हो गई, ऎसे कौनसे सामाजिक बदलाव आ गए जिससे संयुक्त परिवार विघटित होकर अणु परिवार के रूप में बदल गए। लोग सामाजिक सरोकारो से कटते जा रहे हैं। संवादहीनता की सोच ने लोगों को छोटे-छोटे दायरों में बाट दिया है। इस सोच ने आस-प़डौस की सहिष्णुता और सौहाद्रपूर्ण वातावरण को लील लिया।
भौतिक उन्नति और तद्जन्य तथाकथित सामाजिक प्रतिष्ठा संवादहीनता का दूसरा कारण है। भौतिक उन्नति और पद प्रतिष्ठा ने परिवार का अपनत्व, कमाई और त्याग की भावना को समाप्त कर दिया। कम्प्यूटर के नेट से तो दुनियाभर से जु़डने का दंभ है, किंतु पास-प़डौस में क्या हो रहा है उसकी किसी को चिंता नहीं हैं। सारे संबंध स्वार्थपरक और एकल सुख पर आधारित हो गए हैं।
पिता के पास कठिन परिस्थितियों में भी परिवार को पालने और उम्रभर का अनुभव पुत्र की दृष्टि में अप्रासंगिक और कालातीत हो गए। पुत्र की दृष्टि में पिता का अनुभव रूढि़वादी और उसके भौतिक संसाधनों में बाधक है। आज पुत्र को माता-पिता की तबीयत पूछने की फुरसत नहीं है। वर्तमान परिस्थितियों में सामाजिक सरोकार,आपसी संवाद और सामाजिक सूचनातंत्र जिस तरह से नष्ट हुआ है वह हमें निश्चय ही आत्मकेन्द्रित एंव एकाकी जीवन की ओर ले जाने वाला है।