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खुशी के रंग अनेक

Posted by khaskhabar.com
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किसी व्यक्ति में खुश होने की आदत 50 प्रतिशत तक उसके गुणसूत्रों पर निर्भर करती है। शोधों में यह देखा गया है कि जु़डवां और एक ही वंश से संबंधित लोगों में खुशी का स्तर और उसे महसूस करने का स्तर काफी हद तक एक जैसा था, जबकि उनकी परवरिश एक-दूसरे से हजारों मील की दूरी पर हो रही थी।
खुशी को परिभाषित करना बहुत मुश्किल है। न जाने कितने ही दार्शनिकों, धर्माधिकारियोंऔर मनोवैज्ञानिकों ने इसे समझाने का प्रयास किया है। दार्शनिकों और विश्लेषकों ने खुशी को अच्छे जीवन और उन्नति से जो़ड कर देखा है। खुशी को समझने का सबसे पुरातन प्रयास ग्रीकों द्वारा किया गया है। उन्होने इसे "युडेमोनिया" के नाम से संबोधित किया। यह वह अवस्था है जब आपके चारो ओर खुशी और ऎश्वर्य की वर्षा हो रही हो। खुशी ही बौद्ध उपदेशों का केंद्रिय तत्व है। ईसाइयत में खुशी को परमेश्वर के आशीर्वाद की तरह परिभाषित किया गया है।
खुशी का वजन या माप-बहुत प्रयासों के बावजूद खुशी की भावना को नाप पाना मुश्किल काम है। शोधों ने खुशी और अन्य तथ्यों के के बीच कई तरह के संबंध स्थापित करने में सहायता प्रदान की है। उसमें धार्मिकता, अभिभावकता, वैवाहिक स्थिति, उम्र और आमदनी जैसे कई तथ्य शामिल है।
किसी व्यक्ति में खुश होने की आदत 50 प्रतिशत उसके गुणसूत्रों पर निर्भर करती है। 10 से 15 प्रतिशत तक खुशी आस-पास के समाज से जु़डे हुए मापदण़डों पर निर्भर करती है जैसे- वैवाहिक स्थिति, आय, उम्र और इसी तरह के अन्य तथ्य। शेष 35 से 40 प्रतिशत के परिणाम व्यक्ति के व्यक्तित्व पर निर्भर करतें है। जैसे एक बहिर्मुखी व्यक्ति अपनी खुशी को ज्यादा लोगों तक पहुंचाता है और उसे ज्यादा लोगों में बांट कर उसकी तीव्रता को अधिक महसूस करता है।जबकि एक अंतर्मुखी व्यक्ति अपनी खुशी को अपने तक सीमित रखता है और कम समय के लिए उससे प्रभावित होता है।
ईश्वर खुशी देता है-धार्मिक प्रवृति के लोग खुशी को ज्यादा गहराई से महसूस करते हैं और तनाव भी उन्हें कम प्रभावित करता है। 200 से ज्यादा सामाजिक अध्ययनों में यह सामने आया है कि अधिक धार्मिक प्रवृति के लोगों में नशे की लत, आत्महत्या और अवसाद के मामले अन्य लोगों की तुलना में काफी कम है। उनका वैवाहिक और पारिवारिक जीवन भी अन्य लोगों की तुलना में अधिक सुखमय है।
वक्त के साथ खुशी-विकासवादी और जैव वैज्ञानिक ग्रिंडे ने अपनी पुस्तक "डार्विनियन हैप्पीनेस" में इस विचार को विस्तार से समझाने का प्रयास किया है। उन्होने इस भावना को समय के साथ जो़डते हुए इसे भूत, वर्तमान और भविष्य से प्रभावित बताया है। जो खुशी बीते हुए कल से जु़डी होती है, उसमे संतोष,गर्व और शाति का एहसास अधिक होता है। जो खुशी भविष्य से जु़डी होती है उसमें आशावाद,सकारात्मकता और विश्वास जैसी भावनाएं प्रबल होती है। वर्तमान से जु़डी खुशीयों को "सुख और संतुष्टि" दो भागों में बांटा जा सकता है। सुख क्षणिक होता है और शारिरिक होता है। संतोष द्वारा प्राप्त होने वाली खुशी में जु़डाव,बंधन,प्रवाह और आत्म-चेतना होती है और भावनाओं का एहसास भी लंबे समय तक बना रहता है। इस तरह हम खुशी के स्तर को वक्त के अनुसार माप सकते है।
खुश रहिए,खुशी बांटिए-आदमी के मस्तिष्क में हमेशा कमतर और बेहतर के मध्य ल़डाई चलती रहती है और जीवन की सभी प्राथमिकताएं इन्ही दोनों के द्वंद्व के मध्य निर्धारित होती है। खुशी सकारात्मकता की ओर बढ़ाती है। यदि हमें खुशी और संतोष का अनुभव नहीं हो रहा है तो इसका मतलब हम गलत दिशा में बढ़ रहे हैं। खुशी प्राप्त करने के लिए ही व्यक्ति अमीर बनना चाहता है, सम्मान प्राप्त करना चाहता है। अरस्तु ने खुशी को भावना से अधिक क्रिया माना है। "युडेमोनिया" एक अवस्था है जिसे मनुष्य न सिर्फ प्राप्त करना चाहता है बल्कि उसे स्थायी बनाए रखने की कोशिश भी करता है। खुशी आत्मा को निर्मल बनाती है। मुस्कुराते और खिलखिलाते हुए चेहरे हरेक युग की मानवजाति में बिल्कुल एक जैसे रहे है, फिर चाहे वजहें कितनी ही अलग क्यों न हो।